000 | 03844 a2200205 4500 | ||
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005 | 20250425103429.0 | ||
008 | 241111b2021|||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789386870797 | ||
041 | _aHindi | ||
082 | _a891.437 A83 | ||
100 |
_aKumar, Ashwani _eAuthor _94529 |
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245 | _aPenalty corner: evam anya kahaniyan (पेनल्टी कार्नर: एवं अन्य कहानियाँ) | ||
260 |
_aNew Delhi: _bGranth Akademi, _c2021. |
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300 | _a144p.;22cms. | ||
500 | _a‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ झारखंड के औपनिवेशिक शोषण-दमन और उससे उपजी सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों-विकृतियों को बेहद बारीकी से रेखांकित करती हैं। झारखंड के जनजीवन को संदर्भित करनेवाली ऐसी रचनाएँ और रचनाकार बहुत विरले हैं—हिंदी में तो और भी कम। दरअसल बहुत से रचनाकार यहाँ की जमीनी हकीकत से जुड़ ही नहीं पाते। संभवतः औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेष उन्हें ऐसा करने नहीं देते। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियाँ अश्विनी कुमार पंकज को उन रचनाकारों से भिन्न पाँत में खड़ा करती हैं—एक शिखर की तरह, नैदिन गार्डीमर की तरह। ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ की कहानियों का फलक बहुत विस्तृत है। इसमें एक ओर गिरिडीह-धनबाद की परित्यक्त कोयला-खदान हैं तो दूसरी ओर जादूगोड़ा का विकलांग-बाँझ कर देनेवाला प्रदूषित परिवेश। एक तरफ सिमडेगा, जलडेगा, बानो, मनोहरपुर के घाट-पहाड़, बाजार-हाट हैं तो दूसरी तरफ राँची-टाटा के चमचमाते फाइव-स्टार होटल। गरीबी और अमीरी का असह्य कंट्रास्ट। भाषा का रेंज भी उतना ही विस्तृत है, जितना इसका फलक। ठेठ गाँव-घर की हिंदी-नागपुरी से लेकर लेटेस्ट अंग्रेजी तक—‘चेंज योर माइंड इन राइट डायरेक्शन।’ अतिरिक्त प्रयास के बिना कथ्य के साथ सादा-सा शिल्प सहज रूप से कहानियों में आया है। एक नैसर्गिक आदिवासी परिवेश का प्रस्तुतिकरण सादगी-मौलिकता- सहजता के साथ। | ||
650 |
_aऔपनिवेशिक शोषण-दमन _96349 |
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650 |
_aसामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों-विकृतियों _96350 |
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650 |
_aगिरिडीह-धनबाद की परित्यक्त कोयला-खदान _96351 |
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942 | _cHN | ||
999 |
_c1333 _d1333 |