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| 020 | _a9789395404518 | ||
| 041 | _aHindi | ||
| 082 | _a891.430 R59 | ||
| 100 |
_aRizvi, Syed Najmul Raza _eAuthor _94371 |
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| 245 | _aAtharahavin sadi ke jamindar ( अठारहवीं सदी के जमींदार ) | ||
| 260 |
_bAanamika Publishers and Distributors Private Limited, _aNew Dellhi: _c2023. |
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| 300 | _a277p.;23cms.[HBK.] | ||
| 500 | _a18वीं शताब्दी भारत के उत्तर–सामंतीय काल का अंग है । यह काल कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा है । यह एक संक्रमण काल था जब सामंतवाद अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था और उभरते पूंजीवाद की शक्तियां सिर उठा रही थीं । ऐसी स्थिति में इतिहास को समाज के विकास की एक प्रक्रिया के रूप में देखने वालों के लिए, भारतीय सामन्तवाद के महत्वपूर्ण घटक, जमींदारों, का अध्ययन करना न केवल स्वाभाविक, अपितु अनिवार्य हो जाता है । मुगल साम्राज्य के राजनीतिक पराभव के इस काल में जमींदार वर्ग दोहरे अन्तविरोध से ग्रस्त था । | ||
| 650 |
_aHindi literature _94372 |
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| 650 |
_aसमाज के विकास _96334 |
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| 650 |
_aसामंतीय काल का अंग _96335 |
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| 942 | _cHN | ||
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