Dastak (दस्तक)
Language: Hindi Publication details: New Delhi: Prabhat Prakashan, 2019. Description: 256p.; 22cmsISBN: 9789353224172Subject(s): Jo samay mila, uska kithna upayog hua? | उत्प्रेरक माध्यम था | नागरिक समाज के लिए आँख खोलनेवाले होते थेDDC classification: 891.434 V56Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Hindi Books | Dr. S. R. Ranganathan Library General Stacks | 891.434 V56 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 3422 |
विनोद बंधु ईमानदारी और पारदर्शिता से ओत-प्रोत कुछ प्रामाणिक पत्रकारों में से एक हैं। ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में सन् 2012 से 2015 के बीच उन्होंने अपने साप्ताहिक कॉलम ‘दस्तक’ में अनेकानेक विषयों पर लिखा था, जो राजसत्ता के लिए चेतावनी देनेवाले और नागरिक समाज के लिए आँख खोलनेवाले होते थे। चूँकि दैनिक हिंदुस्तान बिहार में सर्वाधिक बिकनेवाला अखबार है, इसलिए उनके कॉलम का सरकार पर अकसर निर्णायक प्रभाव होता था। फलतः सरकार अपनी कमियों को दुरुस्त ही नहीं करती थी, बल्कि अपने शासन-तंत्र को भी एक काम करनेवाले राज्य के ढाँचे में बदलने की कोशिश करती थी। ‘दस्तक’ अपनेपन की भावना के साथ बिहार का प्रचार-प्रसार करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था। ऐसे समय में जब राज्य में उप-राष्ट्रीयता की भावना लगभग अनुपस्थित थी, उसको मजबूत करने में ‘दस्तक’ की गंभीर भूमिका रही। उप-राष्ट्रीयता कोई गुप्त एजेंडा नहीं है। इसे मजबूत करने के लिए ज्वलंत सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंतित होना जरूरी है। ऐसे मुद्दे उनके कॉलम में निखरकर आते थे। ‘दस्तक’ में बिहार के बजट या अन्य आर्थिक मुद्दों पर ही बारीकी से चर्चा नहीं होती थी, बल्कि उसमें राज्य को ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा दिलाने के लिए एक जुझारू प्रयास दिखता था। ‘दस्तक’ सरकार के लिए कोई थपकी नहीं थी। यह नागरिक समाज के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव था। यह एक ऐसा उत्प्रेरक माध्यम था, जिसने अनेक बहस-मुबाहिसे पैदा किए। सोशल मीडिया के दौर में, जब वास्तविकता को समझना मुश्किल है, ‘दस्तक’ ने राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण दौर में सामाजिक आलोड़न पैदा करने में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाई।