Gitanjali: maharshi Rabindranath Tagore kruth (गीतांजलि)
Language: Hindi Publication details: New Delhi: Vidya Vihar, 2020. Description: 122p.:ill.;22cmsISBN: 9789380186054Subject(s): Thum ne muje ananth bana diya | Mere prano ke pranDDC classification: 891.431 R33Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Hindi Books | Dr. S. R. Ranganathan Library General Stacks | 891.431 R33 (Browse shelf(Opens below)) | Available | 3416 |
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891.431 D55 Rashmirathi (रश्मिरथी ) | 891.431 D55 Parshuram ki pratiksha (परशुराम की प्रतीक्षा ) | 891.431 D55 Kurukshetra (कुरुक्षेत्र) | 891.431 R33 Gitanjali: maharshi Rabindranath Tagore kruth (गीतांजलि) | 891.431 R34 Tulsi dohawali (तुलसी दोहावली) | 891.431 S52 Anuvadit kavitayen ( अनुवादित कविताएँ ) | 891.431 S87 Kalam sir ke success-path (कलम सर की सक्सेस-पथ) |
‘गीतांजलि’ महान् रचनाकार नोबल पुरस्कार विजेता कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर का प्रसिद्ध महाकाव्य है। एक शताब्दी पूर्व जब इसकी रचना हुई, तब भी यह एक महाकाव्य था और एक शताब्दी के बाद भी यह महाकाव्य है तथा आनेवाली शताब्दियों में भी यह एक महाकाव्य ही रहेगा। इस महाकाव्य की उपयुक्तता तब तक रहेगी जब तक मानव सभ्यता जीवित है।
उन्नीसवीं सदी में विश्व साहित्य के क्षेत्र में भारतीयों की पहचान इस महाकाव्य के माध्यम से हुई। यह महाकाव्य हर भारतीय की अनुभूतियों से अंतरंग रूप से जुड़ा है। यह अपने आप में एक अनूठा महाकाव्य है, जो साधारण व्यक्ति से लेकर प्रकांड विद्वान् के लिए समान रूप से प्रेरणादायी है। इस काव्य की रचना न किसी विशेष समाज, प्रांत या देश विशेष के लिए है। यह महाकाव्य मानव संस्कृति एवं सभ्यता के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
किसी महाकाव्य का अनुवाद दूसरी भाषा में करना तथा उसी भाषा में उसका शाब्दिक अर्थ मात्र करना काफी नहीं होता। अनुवाद से पूर्व यह आवश्यक है कि उस महाकाव्य में अंतर्निहित भावों को समझकर सम्यक् रूप में उसका मंथन किया जाए।
गीतांजलि, जिसका अनुवाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं एवं सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है, ऐसे महाकाव्य का फिर से अनुवाद करने का साहस जुटाना अपने आप में अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है।